धर्म ग्रंथों के अनुसार, विधि विधान से प्रदोष का व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते है।
शिव की कृपा से व्यक्ति के समस्त प्रकार के दु:खों से दूर रहता है। उसके हर प्रकार के दोष मिट जाते है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।
रविवार के दिन प्रदोष हो और उसका व्रत किया जाता है तो व्यक्ति निरोगी रहता है।
सोमवार के दिन प्रदोष हो और उसका व्रत किया जाए तो व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।
मंगलवार के दिन आने वाली प्रदोष का व्रत रखने से व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है।
बुधवार के दिन आने वाली प्रदोष का व्रत करने से व्यक्ति को मनवांछित फल मिलता है।
बृहस्पतिवार के दिन आने वाली प्रदोष का व्रत करने से व्यक्ति के शत्रुओं का नाश होता है।
शुक्रवार के दिन आने वाली प्रदोष के व्रत से सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
शनिवार के दिन आने वाली प्रदोष के व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।
प्रदोष का व्रत करने की विधि
प्रदोष का व्रत करने के लिण् त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठे। नित्यकर्मों से निवृत होकर,महादेव का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है और पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण कर भगवान शिव की अर्चना की जाती है। मान्यता है कि ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल को पूजा करना विशेष शुभ रहता है। पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ॐ नम: शिवाय" इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए।
प्रदोष का उद्यापन
प्रदोष का उद्यापन करने के लिए त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है। उद्यापन से एक दिन पूर्व गणेश पूजन होती है तथा रात्रि को जागरण किया जाता है। व्रत और पूजा के बाद ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है। प्रदोष का उद्यापन 11 या 26 त्रयोदशियों तक व्रत रखने के बाद किया जाता है।
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