कैला देवी का मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता राजस्थान में शक्ति पीठ shakti peeth in rajasthan के रूप में है। नवरात्रों में कैला मईया का लक्खी मेला आयोजित होता है। खासकर चेत्र नवरात्रों में लाखों भक्त मां कैला के दर्शन के पहुंचते हैं। कई भक्त पैदल तो कई कनक दंडवत करते हुए माता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं।
राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल कैला देवी का मंदिर ऐतिहासिक है। इस मंदिर का निर्माण 1600 ईस्वी में राजा भोमपाल सिंह ने करवाया था। मंदिर परिसर में चांदी की चौकियों पर दो भव्य मूर्तियां हैं जिनमें एक कैला मैया की और दूसरी चामुंडा माता की है। कैला देवी का मुंह कुछ टेड़ा है। यहां से पहले कैला देवी की मूर्ति नगरकोट के एक मंदिर में स्थापित थी। मंदिरों को ध्वस्त करने के अभियान से आशंकित मंदिर के पुजारी योगिराज मूर्ति को मुकुंददास खींची के यहां ले आए।
इस दौरान केदार गिरि बाबा की गुफा के पास पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। मूर्ति को बैलगाड़ी से उतार कर नीचे रख दी और वे बाबा से मिलने गुफा में चले गए। अगले दिन सुबह योगिराज आगे की यात्रा पर रवाना होने के लिए मूर्ति को उठाई तो वह हिली नहीं। काफी प्रयास किया। आखिर माता की इच्छा को देखते हुए उन्होंने मूर्ति वहीं पर स्थापित करने और केदार बाबा को उसकी सार-संभाल की जिम्मेदारी सौंपने का तय किया। यह वहीं स्थान है जहां आज यह मूर्ति स्थापित है।
कैलादेवी की कहानी: दुर्गा का अवतार है कैला मां Kaila Devi Story
कैला मईया kaila maiya कौन थी? इस बारे में अलग-अलग लोककथाएं प्रचलित है। एक मान्यता के अनुसार, वासुदेव और देवकी के आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस के कारागार में जन्म लिया। दूसरी तरफ नन्द और यशोदा के यहां महायोगिनी योगमाया ने जन्म लिया। बाद में कृष्ण को कंस के कारागार से निकालकर उनकी जगह योगमाया को पहुंचा दिया गया। जब कंस ने उस कन्या रूपी योगमाया को मारने का प्रयास किया तो वह कंस के हाथों से छूटकर कंस को यह चेतावनी दे गई कि उसको मारने वाला जन्म ले चुका है।
यही योगमाया कैला देवी है। प्राचीन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस का इस क्षेत्र में आंतक था। यहां के निवासियों द्वारा माता दुर्गा की पूजा की गई और माता दुर्गा ने कैला देवी का अवतार लेकर नरकासुर राक्षस का वध किया। इस कारण कैलादेवी का दुर्गा का अवतार माना जाता है।
डाकू आते हैं यहां पूजा करने
कभी यहां पर बीहड़ था और आसपास डाकुओं का खौफ था। यहां बीहड़ों में डाकू रहते थें। वे डकैती से पहले और डकैती के बाद मां की पूजा करते थें। आज भी यहां कई डकैत पूजा करने आते है, लेकिन आज तक किसी डकैत ने यहां भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। मंदिर एक पहाड़ी की तलहटी में है तथा थोडी दूरी पर कालीसिंध नदी बहती है, जहां भक्तजन दर्शन करने से पूर्व स्नान करते हैं। मंदिर के निर्माण में करौली के लाल पत्थर का उपयोग हुआ है। लाल पत्थर यहां काफी फेमस है और इसका इस्तेमाल हवेलियों और भवन निर्माण में होता है।
इस कारण तिरछा है कैला देवी का मुंह
एक मान्यता के अनुसार, बहुत समय पहले एक भक्त माता के दरबार में नियमित आता था। एक दिन वह भक्त माता के दर्शन करने के बाद जाने लगा। भक्त ने मंदिर से बाहर आते हुए कहा कि वह जल्दी ही लौटकर आएगा। कहा जाता है कि वह आज तक नहीं आया। ऐसा कहा जाता है कि उसके इंतजार में माता का मुंह उधर देख रहा है जिधर वो भक्त गया था।
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